संदेश
मार्च, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
ना गीता बुरी है,ना कुरान बुरा है। ना ग्रंथ बुरा,है ना बाइबल बुरा है। ना हिंदू बुरा है,ना मुसलमान बुरा है। ना सिख बुरा है,ना ईसाई बुरा है। ना भगवान बुरा हैं,ना अल्लाह बुरा है। ना रब बुरा है,ना मसीह बुरा है। भेजा में जो कुछ गलत घुसा है वह शैतान बुरा है। मुकेश कुमार बर्मन I LOVE MY INDIA...... We are not Hindu,Muslim,Sikh,Christian. We are first Indian Yaar.....
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप
एक बार पढ़िएगा जरूर--मेरी यह कहानी तब की है जब मैं अपने गांव बिर्रा(छत्तीसगढ़) से CGBSE 2018 के 12वीं बोर्ड परीक्षा को दिला कर अपने परिवार के पास काम करने के लिए पंजाब पहुंचा।आगे पढ़े--जालंधर(पंजाब) के एक दुकान पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी मजाक में लगे ही थे,कि लगभग 75 साल की एक बुजुर्ग महिला पैसा मांगते हुए हाथ फैलाकर मेरे सामने खड़ी हो गई। उनकी कमर झुकी हुई थी,चेहरे की झुर्रियों में भूख तैर रही थी,नेत्र भीतर को धंसे हुए किंतु सजल थी।उनको देखकर मन में ना जाने क्या आया कि मैंने जेब में सिक्का निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया- दादी लस्सी पीओगी? मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुई और मेरे मित्र अधिक क्योंकि अगर मैं उनको पैसा देता तो बस 5-10 रुपये ही देता लेकिन लस्सी तो ₹50 की एक गिलास थी इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी कि मुझे ठगकर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी। दादी ने संकुचाते हुए हामी भरी अरे अपने पास जो मांग कर जमा किए गए जो 6 ₹7 थे अपने कांपते हाथों से मेरी और बढ़ाएं।मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने उनसे पूछा यह किस लिए? तो वह बोली इनको मिलाकर मेरे लसी के पैसे चुका देना बेटा!! भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था... रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी। एकाएक मेरी आंखें छल छला आई और भरभराए हुए गले से मैंने दुकान वाले से लस्सी बढ़ाने को कहा...उन्होंने अपने पैसे वापस अपनी मुट्ठी में बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई। अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ क्योंकि मैं वहां मौजूद दुकानदार,अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका डर था कि कहीं कोई टोक ना दें...कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बैठाए जाने पर आपत्ति ना हो जाए... लेकिन वह कुर्सी जिस पर मैं बैठा था मुझे काट रही थी... लस्सी गिलास में भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों में आते ही मैं अपना गिलास पकड़ कर दादी के पास जमीन पर ही बैठ गया क्योंकि ऐसे करने के लिए मैं स्वतंत्र था...इससे किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी...हां!मेरे दोस्तों ने एक पल को मुझे घूरा लेकिन वो कुछ कहते,उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए मुझसे कहा... "ऊपर बैठ जाओ बेटा!मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं मगर इंसान कभी कभार ही आता है।" अब सबके हाथों में लस्सी के गिलास और होठों पर सहज मुस्कुराहट थी,बस एक दादी ही थे जिनकी आंखों में तृप्ति के आंसू ,होठों पर मलाई के कुछ अंश और दिल में सैकड़ों दुआएं थी। ना जाने क्यों जब कभी हमें दस ₹20 किसी भूखे गरीब को देने या उस पर खर्च करने होते हैं तो वह हमें बहुत ज्यादा लगते हैं लेकिन सोचिए कि क्या वह चंद रूपये किसी के मन को तृप्त करने से अधिक कीमती है? क्या कभी भी उन रुपयों को बीयर,सिगरेट,शराब मांस,मटन पर खर्च कर ऐसी दुआएं खरीदी जा सकती है? "जब कभी अवसर मिले ऐसे दयापुर्ण और करूणामय काम करते रहे भले ही कोई आपका साथ दे या ना दे,समर्थन करें या ना करें सच मानिए इससे जो आपको आत्मिक सुख मिलेगा वह अमूल्य है।" दोस्तों मैं आप लोगों से बस इतना ही कहना चाहता हूं कि किसी गरीब को केवल पैसे ही देने की बजाय थोड़ा इज्जत प्यार से उनको भोजन भी करा दीजिए। कसम से बोलता हूं वह आपको जिंदगी भर याद करेगी।मेरी यह कहानी बेशक बहुत छोटी है लेकिन सोच में बहुत बड़ी है। इस कहानी से कुछ न कुछ सीख जरूर लेना मेरे दोस्तों। आपका अपना मुकेश कुमार बर्मन I LOVE MY INDIA..... जय हिंद....
- लिंक पाएं
- X
- ईमेल
- दूसरे ऐप